प्रशांत बोस की गिरफ्तारी के बाद प्रयाग मांझी ने पारसनाथ में संभाली थी नक्सलवाद की कमान |

प्रशांत बोस की गिरफ्तारी के बाद प्रयाग मांझी ने पारसनाथ में संभाली थी नक्सलवाद की कमान |

Jharkhand Naxal News: झारखंड के बोकारो जिले में सोमवार को लुगु पहाड़ की तलहटी में हुई मुठभेड़ में सुरक्षा बलों ने एक करोड़ के इनामी नक्सली प्रयाग मांझी उर्फ विवेक दा समेत 8 कुख्यात नक्सलियों को ढेर कर दिया। यह माओवादी संगठन की रीढ़ तोड़ने वाली सबसे बड़ी कार्रवाई मानी जा रही है।

प्रशांत बोस की गिरफ्तारी के बाद प्रयाग ने संभाली थी नक्सल कमानवर्ष 2023 में नक्सल संगठन के शीर्ष नेता प्रशांत बोस और उनकी पत्नी की गिरफ्तारी के बाद संगठन में हड़कंप मच गया था। इसके बाद संगठन ने अपने भरोसेमंद और रणनीतिक रूप से मजबूत नेता प्रयाग मांझी को पारसनाथ की कमान सौंप दी थी। वह लगातार संगठन की गतिविधियों को संचालित कर रहा था।


दो वर्षों से पारसनाथ में कर रहा था कैंप

धनबाद जिले के टुंडी प्रखंड स्थित दलबूढ़ा गांव का रहने वाला प्रयाग मांझी उर्फ विवेक दा वर्ष 2023 में पारसनाथ पहुंचा और वहीं से पूरे इलाके में माओवादी नेटवर्क का विस्तार करता रहा। गिरिडीह, झुमरा, छत्तीसगढ़, ओडिशा और बिहार तक उसका प्रभाव फैला हुआ था।


केंद्रीय कमेटी का सदस्य, कई नामों से था चर्चित

भाकपा (माओवादी) संगठन के केंद्रीय समिति सदस्य प्रयाग मांझी के कई नाम थे — विवेक दा, नागो मांझी, करण दा और फुचना। उसके खिलाफ केवल गिरिडीह जिले में ही 50 से ज्यादा केस दर्ज हैं। उसकी गिनती माओवादी संगठन के सबसे चालाक और खतरनाक नेताओं में होती थी।


आधुनिक हथियारों से लैस दस्ते का करता था नेतृत्व

प्रयाग मांझी के साथ परवेज मांझी उर्फ अनुज दा, अरविंद यादव उर्फ नेताजी, नारायण कोड़ा जैसे बड़े नक्सली सक्रिय थे। उनके पास AK-47, इंसास राइफल समेत अन्य अत्याधुनिक हथियार थे। इस गिरोह में करीब 50 से अधिक नक्सली, जिनमें एक दर्जन महिलाएं भी शामिल थीं, प्रयाग के साथ पारसनाथ में डेरा जमाए हुए थे।


क्यों था पारसनाथ माओवादियों के लिए सुरक्षित ठिकाना?

पारसनाथ पर्वत को झारखंड में नक्सलियों का सबसे सुरक्षित जोन माना जाता रहा है। यही वजह थी कि प्रशांत बोस और फिर प्रयाग मांझी जैसे बड़े माओवादी यहां लंबे समय तक ठिकाना बनाए हुए थे। लेकिन हाल के वर्षों में सुरक्षा बलों की बढ़ी सक्रियता और लगातार अभियानों के चलते अब यह क्षेत्र भी उनके लिए सुरक्षित नहीं रह गया।


निष्कर्ष:
प्रयाग मांझी की मौत के साथ नक्सल संगठन को बड़ा झटका लगा है। सुरक्षा एजेंसियां इसे माओवादी नेटवर्क के खिलाफ बड़ी जीत के रूप में देख रही हैं। झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़ और ओडिशा में माओवाद की कमर तोड़ने की दिशा में यह एक निर्णायक कदम माना जा रहा है।

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