Patna: बिहार की राजनीति में इस बार ऐसा उलटफेर देखने को मिल रहा है, जिसकी कल्पना शायद किसी ने नहीं की थी। शुरुआती रुझानों ने साफ संकेत दे दिया है कि 20 साल बाद पहली बार ऐसा मौका बन रहा है जब नीतीश कुमार के बिना भी एनडीए राज्य में सरकार बनाने की स्थिति में आ सकता है।
यह बदलाव सिर्फ एनडीए की जीत या इंडिया गठबंधन की हार भर नहीं है — बल्कि यह बिहार की राजनीति में शक्ति संतुलन के पूरी तरह बदल जाने का संकेत है।
रुझानों में BJP सबसे बड़ी पार्टी
अभी तक आए आंकड़ों के अनुसार 243 सीटों वाली विधानसभा में:
- BJP – 96 सीटों पर आगे
- JDU – 84 सीटों पर बढ़त
- LJP (रामविलास) – 19 सीटें
- HAM – 5 सीटें
- राष्ट्रीय लोक मोर्चा – 4 सीटें
अगर एनडीए से JDU को अलग भी कर दिया जाए, तब भी BJP और उसके सहयोगियों का आंकड़ा 124 सीटों तक पहुँच जाता है — जो बहुमत 122 से ऊपर है।
यानी बिना नीतीश कुमार के भी एनडीए आराम से सरकार बना सकता है।
क्या BJP दे सकती है अपना मुख्यमंत्री?
राजनीतिक गलियारों में चर्चा तेज है कि भाजपा इस बार मुख्यमंत्री का पद अपने पास रखना चाहती है। अगर नीतीश कुमार इस प्रस्ताव पर सहमत नहीं होते हैं, तो BJP:
- अन्य सहयोगियों के साथ मिलकर सरकार बना सकती है
- JDU के अंदर मौजूद असंतुष्ट खेमे को साध सकती है
पहले से ही यह चर्चा जोरों पर थी कि JDU दो हिस्सों में बंटा हुआ है — एक नीतीश का गुट और दूसरा भाजपा का करीबी गुट। ऐसे में JDU में टूट की संभावना से इनकार नहीं किया जा रहा।
RJD और कांग्रेस की स्थिति बेहद खराब
इस चुनाव में कई मिथक टूटते दिख रहे हैं। रुझानों के अनुसार:
- RJD का लगभग सफाया हो रहा है
- तेजस्वी यादव खुद चुनाव हार चुके हैं
- कांग्रेस सिर्फ एक सीट पर आगे है
- लेफ्ट पार्टियों की भी स्थिति बेहद कमजोर है
- वीआईपी के मुकेश सहनी भी चुनाव में प्रभाव नहीं दिखा सके
‘पैसा दो–वोट लो’ मॉडल चर्चा में
एनडीए की इस बेहद बड़ी बढ़त के पीछे एक बड़ा कारण माना जा रहा है — चुनाव से ठीक पहले 1.50 करोड़ मतदाताओं के खातों में 10-10 हजार रुपये भेजना।
राजनीतिक विश्लेषक कह रहे हैं कि इस चुनाव ने एक नया फॉर्मूला स्थापित कर दिया है, जिसे चाहे अच्छा कहें या खराब — पर यह साफ है कि पैसा दो, वोट लो का संदेश जनता तक गहराई से गया।
अंतिम नतीजों का इंतजार
हालांकि, मतगणना अभी जारी है। अंतिम परिणाम आते-आते बदलाव भी संभव हैं, लेकिन शुरुआती रुझान बता रहे हैं कि बिहार की राजनीति एक ऐतिहासिक मोड़ पर खड़ी है — जहाँ नीतीश कुमार अब सत्ता समीकरण की अनिवार्य शर्त नहीं रह गए हैं।

