रांची:
झारखंड के पुलिस महानिदेशक (DGP) अनुराग गुप्ता को सोमवार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली। विपक्ष के नेता बाबूलाल मरांडी द्वारा उनकी नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने इसे खारिज कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई
मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई, न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन.वी. अंजारिया की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की। सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने दलील दी कि डीजीपी की नियुक्ति पूरी तरह राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में है और यह नियमों के अनुरूप की गई है। अदालत ने दलीलों पर सहमति जताते हुए बाबूलाल मरांडी की अवमानना याचिका को खारिज कर दिया।
केंद्र बनाम राज्य विवाद
केंद्र सरकार ने पहले पत्र लिखकर झारखंड सरकार को सूचित किया था कि अनुराग गुप्ता 30 अप्रैल 2025 तक ही डीजीपी पद पर सेवा दे सकेंगे। लेकिन राज्य सरकार ने इस निर्देश को खारिज करते हुए उन्हें दो वर्षों के लिए स्थायी पुलिस महानिदेशक नियुक्त करने का फैसला किया।
कैबिनेट की बैठक में पास हुई अधिसूचना के मुताबिक अनुराग गुप्ता का कार्यकाल 26 जुलाई 2026 तक तय किया गया। इसी फैसले को बाबूलाल मरांडी ने चुनौती दी थी।
विशेष नियमावली बनी विवाद का कारण
अनुराग गुप्ता की नियुक्ति के लिए राज्य सरकार ने विशेष नियमावली बनाई थी। इस पर राजनीतिक हलकों में आरोप-प्रत्यारोप शुरू हो गए। केंद्र सरकार ने भी उनकी नियुक्ति पर आपत्ति जताते हुए गृह मंत्रालय की ओर से मुख्यमंत्री को पत्र भेजा और कहा कि उनकी सेवा 30 अप्रैल 2025 तक ही मान्य होगी। अब यह देखना बाकी है कि इस मामले पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन आगे क्या रुख अपनाते हैं।
2020 में हुआ था निलंबन
गौरतलब है कि वर्ष 2020 में हेमंत सोरेन सरकार ने ही अनुराग गुप्ता को निलंबित किया था। उन पर आरोप था कि वर्ष 2016 में राज्यसभा चुनाव के दौरान तत्कालीन कांग्रेस विधायक निर्मला देवी को भाजपा उम्मीदवार के पक्ष में वोट देने के लिए प्रलोभन देने और उनके पति पूर्व मंत्री योगेंद्र साव को धमकाने की कोशिश की गई थी। करीब 26 महीने तक निलंबन झेलने के बाद, अप्रैल 2022 में उन्हें सेवा में बहाल किया गया।