RIMS बर्खास्तगी मामला: बाबूलाल मरांडी ने उठाई CBI जांच की मांग, राजनीतिक हलचल तेज
रांची: झारखंड के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल रिम्स (RIMS) के निदेशक की अचानक बर्खास्तगी ने राज्य की राजनीति और प्रशासन में हलचल मचा दी है। इस घटनाक्रम को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है और पूरे मामले की CBI जांच कराने की मांग की है।
सूत्रों के अनुसार, रिम्स निदेशक पर गवर्निंग बॉडी की बैठक के दौरान कुछ निजी कंपनियों—हेल्थमैप और मेडाल—को कथित तौर पर अनुचित भुगतान करने का दबाव बनाया गया था। गौरतलब है कि इन भुगतानों पर पहले ही महालेखाकार (AG) की ऑडिट रिपोर्ट में आपत्ति जताई जा चुकी थी।

बिना कारण बताए हटाया गया दलित अधिकारी?
बताया जा रहा है कि दलित समुदाय से आने वाले इस ईमानदार और योग्य अधिकारी को बिना किसी स्पष्टीकरण या नोटिस के हटाया गया। इससे न केवल प्रशासनिक प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल खड़े हुए हैं, बल्कि जातिगत भेदभाव की आशंका भी जताई जा रही है।
बाबूलाल मरांडी का आरोप: “ऊपर तक पहुंचती है भ्रष्टाचार की कमाई”
भाजपा नेता बाबूलाल मरांडी ने इस पूरे मामले को राजनीतिक और प्रशासनिक भ्रष्टाचार से जोड़ते हुए कहा कि राज्य के कई अहम विभाग—जैसे पथ निर्माण, भवन निर्माण, ग्रामीण विकास, और पेयजल—में ठेकेदारों का चयन और भुगतान सत्ताधारी नेताओं और अधिकारियों के मौखिक निर्देशों पर किया जाता है।
उन्होंने आरोप लगाया कि इन विभागों में होने वाली काली कमाई का बड़ा हिस्सा ‘ऊपर तक’ पहुंचता है, लेकिन जब गड़बड़ी सामने आती है तो निचले स्तर के कर्मचारियों को बलि का बकरा बनाया जाता है।
“निदेशक को इसलिए हटाया गया क्योंकि उन्होंने गलत आदेश नहीं माने”
मरांडी ने दावा किया कि रिम्स निदेशक राजकुमार को केवल इसलिए हटाया गया क्योंकि उन्होंने उच्च अधिकारियों के अनुचित आदेशों का पालन करने से इनकार कर दिया। यह मामला भ्रष्टाचार के उस चक्र की एक और मिसाल है, जिसमें ईमानदार अधिकारियों को दंडित किया जाता है और असली दोषी बच निकलते हैं।
जनता और संगठनों ने की निष्पक्ष जांच की मांग
इस पूरे मामले में समाज के जागरूक वर्ग, मेडिकल संस्थानों और कई सामाजिक संगठनों ने निष्पक्ष और पारदर्शी जांच की मांग की है। उनका कहना है कि यदि इस घटना की गहराई से जांच नहीं हुई, तो यह प्रशासनिक ईमानदारी और जनविश्वास को गंभीर रूप से प्रभावित करेगा।
निष्कर्ष:
रिम्स निदेशक की बर्खास्तगी अब केवल एक प्रशासनिक निर्णय नहीं रह गया है, बल्कि यह राजनीतिक और सामाजिक बहस का मुद्दा बन चुका है। मामले की गंभीरता को देखते हुए सीबीआई जांच की मांग को नजरअंदाज करना अब सरकार के लिए आसान नहीं होगा।