चित्र: पलामू के पांकी ब्लॉक स्थित बैदा गांव का संकेटश्वर संस्कृत उच्च विद्यालय – यहाँ सालों से कोई स्कूल संचालन नहीं होता, भवन जर्जर है। इस विद्यालय में वर्षों से कोई विद्यार्थी नहीं आता, फिर भी शिक्षा विभाग ने वर्ष 2023-24 में ₹8.44 लाख और 2024-25 में ₹9.60 लाख का विकास-राशि (अनुदान) आवंटित किया है | पूर्व प्रधानाचार्य सत्यनारायण सिंह के अनुसार, 2020 में उनकी सेवानिवृत्ति के बाद फर्जी हस्ताक्षरों से स्कूल प्रबंधन समिति बदली गयी और बैंक से अनुदान राशि निकाली गयी । उन्होंने इस घोटाले की लिखित शिकायत डीसी, डीइओ, बीडीओ व बीइओ को भेजी है, लेकिन मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक अब तक अधिकारियों की ओर से कोई औपचारिक जांच या कार्रवाई नहीं की गई है ।
प्रशासनिक जांच और कार्रवाई
उपरोक्त शिकायतों के बावजूद जिला प्रशासन या शिक्षा विभाग की ओर से इस मामले में अब तक कोई सक्रिय कदम नहीं उठाए गए हैं। पूर्व प्रधानाचार्य द्वारा भेजे गए पत्रों के बाद भी न तो जांच का आदेश आया है और न ही किसी स्कूल अधिकारी पर कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई की गई है।
झारखंड में अन्य ‘कागज़ों पर’ संचालित विद्यालय
राज्य में ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं जहाँ विद्यालयों की हालत भी केवल कागज़ों तक सीमित रही है। उदाहरणस्वरूप:
- भारतीय एक्सप्रेस (2020) ने पूर्व-मेट्रिक छात्रवृत्ति घोटाले की जांच में खुलासा किया कि झारखंड के लगभग 15 स्कूलों ने ‘नकली’ छात्रों को छात्रवृत्ति का लाभ दिलाया था।
- अप्रैल 2025 में रांची प्रशासन ने 74 निजी विद्यालयों के यू-डायस प्लस पोर्टल डेटा का सत्यापन किया, जिसमें पाया गया कि इन स्कूलों ने आरटीई कोटा पूरा दिखाने के लिए छात्रों की संख्या में भारी हेराफेरी की थी। इन दोनों घटनाओं ने दिखाया कि राज्य में स्कूल प्रबंधन द्वारा भ्रामक आंकड़ों के माध्यम से सरकारी धन हड़पने की प्रवृत्ति रही है। (झारखंड शिक्षा विभाग ने ऐसी गड़बड़ियों को रोकने के लिए UDise+ डेटा को कड़ाई से मॉनिटर करना शुरू किया है।)
निगरानी और सुधारात्मक कदम
राज्य सरकार और शिक्षा विभाग ने इस प्रकार के गड़बड़ियों पर अंकुश के लिए निम्न उपाय अपनाए हैं:
- रीयल-टाइम मॉनिटरिंग डैशबोर्ड: अप्रैल 2025 में झारखंड सरकार ने एक समग्र ऑनलाइन डैशबोर्ड लॉन्च करने का निर्णय लिया है, जो छात्रों और शिक्षकों की उपस्थिति, परीक्षा परिणाम और अन्य सूचनाओं को रीयल-टाइम में ट्रैक करेगा। इससे स्कूलों का वास्तविक संचालन आसानी से देखा जाएगा।
- UDise+ डेटा सत्यापन: केंद्र के यूनिफाइड डेटा पोर्टल (UDise+) पर सभी स्कूलों को नियमित रूप से नामांकन सूची अपलोड करनी अनिवार्य की गई है। रांची के मामले में इसी प्रणाली से 74 स्कूलों के फर्जी आंकड़े पकड़े गए और उन्हें नोटिस जारी किए गए।
- स्थलीय निरीक्षण और अनुदान रोक: वित्त वर्ष 2024-25 के लिए दर्जनों स्कूलों का अनुदान तब रोका गया जब शिक्षा विभाग के दिशा-निर्देश पर जिला शिक्षा अधिकारियों ने स्थलीय सत्यापन किया। उदाहरणतः मार्च 2025 में झारखंड सरकार ने लगभग 100 विद्यालयों का अनुदान रुका दिया, क्योंकि डीईओ की जांच रिपोर्ट में कई विद्यालय फर्जी पाए गए थे। ऐसे कदम सरकारी अनुदान की हेराफेरी रोकने के उद्देश्य से उठाए गए हैं।
मीडिया/RTI में उजागर अन्य मामले
हाल के महीनों में विभिन्न मीडिया रिपोर्टों और जांचों ने शिक्षा क्षेत्र में इसी तरह की गड़बड़ियों को उजागर किया है। उदाहरण के लिए:
- मार्च 2025 में ‘द फॉलोअप’ न्यूज पोर्टल ने बताया कि झारखंड सरकार ने लगभग 100 हाई स्कूलों का अनुदान रद्द कर दिया, जिनके स्थलीय निरीक्षण में गड़बड़ी पाई गई थी।
- अप्रैल 2025 में रांची प्रशासन ने 74 निजी स्कूलों में छेड़छाड़ पकड़ी (आरटीई कोटा के लिए झूठा डेटा) और उन पर नोटिस जारी किए।
- भारतीय एक्सप्रेस ने नवंबर 2020 में पूर्व-मेट्रिक छात्रवृत्ति वितरण में बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़ा उजागर किया था, जिसमें झारखंड के कई स्कूलों और उनके छात्र लाभार्थियों के रूप में शामिल थे।
इनसे पता चलता है कि झारखंड में भी कभी-कभी स्कूल और छात्रवृत्ति योजनाओं से जुड़े बड़े पैमाने पर घोटाले सामने आते रहे हैं। हालांकि, अभी तक मीडिया या आरटीआई के जरिए किसी ताज़ा जांच का औपचारिक विवरण सार्वजनिक नहीं हुआ है।