झारखंड में बालू ने विकास की रफ्तार रोक दी है. जेएसएमडीसी द्वारा संचालित 444 बालू घाटों में से 409 को अब तक पर्यावरण स्वीकृति नहीं मिली है.सिर्फ 35 बालू घाटों को ही पर्यावरण स्वीकृति मिल पायी है. वहीं कटेगरी टू के बालू घाटों के लिए 256 एमओडी चयनित किये गये है. 148 एमओडी के साथ इकरारनामा निष्पादित किया गया है. लेकन कटेगरी टू के सिर्फ 23 बालू घाट चालू हैं. बालू की किल्लत से अबुआ आवास सहित सरकार के अन्य प्रोजेक्टों पर भी असर पड़ रहा है.
बालू उत्खनन पर रोक के कारण रियल इस्टेट की स्थिति भी डावांडोल हो गयी है. बालू की कालाबाजारी चरम पर है. बालू की बढ़ी कीमतों के कारण घर बनाना मुश्किल हो गया है. निर्माण कार्य प्रभावित हो रहे हैं. हालांकि पर्यावरण स्वीकृति के लिए सिया का गठन हो चुका है. लेकिन पर्यावरण स्वीकृति देने की प्रक्रिया धीमी हो गयी है. बालू घाटों के संचालन के लिए इंवायरमेंटल क्लीयरेंस जरूरी है, इसके बिना बालू का उठाव नहीं हो सकता है. सिया से इंवायरमेंटल क्लीयरेंस मिलने के बाद बालू घाट संचालन के लिए झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद से कसेंट टू एस्टेबलिश (सीटीई) और कंसेंट टू एस्टेबलिश (सीटीई) मिलता है. इसके बाद ही बालू उठाव के लिए एनजीटी से एनओसी लिया जा सकता है.
बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने कहा है कि बालू की कीमतें रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई हैं. महज 10 दिनों में एक ट्रॉली बालू की कीमत में 12,000 रुपये तक का इजाफा हुआ है. झारखंड के तमाम जिलों में बालू की किल्लत है.इस कमी ने न सिर्फ अपार्टमेंट निर्माण, बल्कि प्रधानमंत्री आवास योजना जैसे महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट्स पर भी असर डाला है.